आज रोड पर टहलते हुए
अमरुद का ठेला दिख गया| अमरुद और मूंगफली के बिना सर्दियों का मौसम गुजारना बड़ा ही
मुश्किल काम है| ठेला देखकर मुझसे रहा न गया और जाकर आधा किलो अमरुद खरीद हि लिए|
बचपन से आदत रही है अमरुद को बिना धोए बिना कटे सीधे मुह से खाने की, उसी आदत को
जारी रखते हुए मैंने एक अमरुद बाहर निकाल लिया| मुह से एक टुकड़ा काटा हि था कि
अमरुद का रंग दिख गया – लाल| अरे वाह! ये तो लाल अमरुद था,मेरी खुशी का कोई ठिकाना
ही न रहा| मेरी दादी कहा करती थी कि गर्मियों में जिसका खरबूजा मीठा निकल जाये और
सर्दियों में जिसका अमरुद लाल निकल जाये, उस से खुशनसीब इंसान कोई नहीं हों सकता|
उस एक लाल अमरुद ने हजारो यादे ताजा कर दी| बचपन में कैसे छोटी छोटी बात पर खुश
हों जाते थे हम- वो चाहे लाल अमरुद हों , या आम के बाग में पहला पका आम ढूँढना या
शक्तिमान का गुंडों को मारना, वो दादा जी का जलेबी लेकर आना या किसी इतवार
दूरदर्शन पर अमिताभ बच्चन की फिल्म आना| और अमरुद को लेकर तो न जाने कितने युद्ध
हुए है घर में हम भाइयों के बीच, उस एक छोटे से लाल अमरुद के दस टुकड़े होते थे| ऐसा कुछ खास स्वाद
में फर्क नहीं होता है पर फिर भी हमें मस्ती करने का बहाना जरूर मिल जाता था| एक
ऐसी ही किस्सा है बचपन का –
क्लास 7th की बात है| मेरा तबादला नए स्कूल में हुआ था | ये
हमारे छोटे से शहर का सबसे अच्छा स्कूल माना जाता था| सारे अमीरजादे रईसजादे यहीं
पढ़ने आते थे| एक से एक स्मार्ट लड़के, खूबसूरत लड़कियाँ| आप सोच रहे होंगे इतनी छोटी
उम्र में ऐसी बातें, अरे हुस्न को निहारने सराहने का हुनर मुझ में तब से ही
है|और बचपन से ही मैं आशिक मिज़ाज रहा हूँ
,बाकी बच्चो को जितनी जल्दी जुखाम और खांसी होती थी, मुझे उतनी ही जल्दी इश्क होता
था| पुराने स्कूल में भी मुझे दो तीन लड़कियों
से प्यार हों चुका था, या आजकल की भाषा में कहिये तो मेरा कृश था| मुझे याद है
पहली दफा इश्क मुझे 5th
क्लास में हुआ था| जो लड़की दो चोटियाँ करके आती
थी, उस पर तो मैं पक्का फ़िदा हों जाता था| इस नए स्कूल में भी एक ऐसी हि लड़की थी,
बहुत ही प्यारी| बताने कि जरूरत नहीं आपको, शायद समझ हि गए होंगे कि वो टॉपर थी,
हमेशा फर्स्ट सेकंड रैंक लाती थी| मैंने भी तब ठान लिया कि इसको तो पीछे करके
रहूँगा| बहुत पढाई करता था उन दिनों, न टीचर की मार के डर से, न पापा कि डाट के डर
से.. बस उसे पीछे करने की धुन में| खैर उसे पीछे तो मैं नहीं ही कर पाया कभी स्कूल
में| नया नया स्कूल में आया था तो मैं सबसे शर्माता भी बहुत था| लेट एडमिशन कि वजह
से मेरा कुछ काम छूट गया था| क्लास टीचर ने उसे मेरी हेल्प करने के लिए बोला| मै
उसकी कॉपिया ले जाता था| उसकी हैण्ड राइटिंग तो उससे भी खूबसूरत थी| पर उससे
बातचीत कुछ ही दिन चली, जब मेरा सब काम पूरा हों गया उसने ज्यादा बात करनी बंद कर
दी| मै तो मन ही मन फ़िदा था उसपे, वो जब जब सामने आती मेरी तो सिट्टी पिट्टी ही गुम
हों जाती| ऐसे हि एक बार टीचर्स डे के दिन वो सब को क्लास में चाकलेट बाँट रही थी|
मेरी बेंच पर भी आयी, मेरे सामने पूरा डब्बा कर दिया| मैंने शरमाते हुए सर हिला
दिया कि मुझे नहीं लेनी | उसने अपने आप दो चाकलेट निकाल कर मेरे हाथो में थमा दी
और कहा- खाने पीने के मामले में शरमाते नहीं| हाय ! क्या बताऊ मै, मुझे तो हार्ट
अटैक ही आ गया| फिर मैंने वो दोनों चाकलेट दो हफ्तों में धीरे धीरे करके खतम की|
मैंने उससे दोस्ती करने कि बहुत कोशिश की, पर जब भी बात करने जाता था मै शरमा जाता
था| उसका घर भी मेरे मोहल्ले में ही था| कई बार स्कूल से वापस घर जाते समय वो मेरे
सामने से निकल जाती थी पर मै कुछ न बोल पाता था| समय बीतता रहा| सर्दिया आ गयी|
हमारे स्कूल के बाहर
तरह तरह की चीजे मिला करती थी| एक बूढ़े बाबा भी थे जो अमरुद बेचा करते थे| उनका
बच्चो को लालच देने का तरीका बहुत ही बेहतरीन था| एक रुपये का एक अमरुद देते थे|
और जिसका अमरुद काटने पर लाल निकलता था, उसे वो फ्री में ही दे देते थे| उनके ठेले
पर छुट्टी के टाइम बहुत भीड़ लग जाती थी| बच्चे अमरुद खाने कम, किस्मत आजमाने
ज्यादा जाते थे| मै भी जाता था, और मेरी किस्मत कुछ ज्यादा ही अच्छी थी, मै जब भी
अमरुद उठाता था, अधिकतर वह लाल ही निकलता था| कुछ दिनों बाद तो मेरे दोस्त मुझे अपने
अमरुद चुनने के लिए ले जाते थे| बुड्ढे ने ये देख लिया और मुझसे कहा कि मै दिन में
एक ही अमरुद खरीद सकता हूँ , अपने लिए लू या दोस्तों के लिए मेरी मर्ज़ी| खैर फिर
मैंने जनहित करना बंद कर दिया| एक दिन ऐसे हि जब मै वहाँ पर खड़ा था, वो भी वहाँ आ
गयी| उसने मुझसे कहा- “यार सुना है तुम अमरुद के सेलेक्शन में एक्सपर्ट हों, प्लीज़
मेरे लिए भी निकाल दो”| मैंने बिना कुछ कहे एक अमरुद उठा दिया| उन दिनों किस्मत भी
साथ दिया करती थी, अमरुद लाल निकला| वो बहुत खुश हों गयी| अब क्योंकि मै दुबारा ले
नहीं सकता था, मैंने उसको बिना कुछ बताये कहा कि वो मेरे लिए उठाये अमरुद| वो
मुस्कुरायी और उसने उठाया,पर इस बार हमे पैसे देने पड़ गए| खैर उस समय मुझे अमरुद
से कोई मतलब नही रहा, वो जिस तरह मुस्कुरायी थी उसे देख कर तो मेरे होश उड़ गए थे|
कोई लाल या सफ़ेद अमरुद क्या,ज़हर भी खिलाता मै खा लेता| उस दिन हम बात करते करते
साथ ही घर गए| साथ में मेरा छोटा भाई भी था, और वही सेंटर ऑफ अत्रैक्सन बना रहा|
मुझे आज तक नहीं समझ आया कि लड़कियों को छोटे बच्चे ही क्यों क्यूट लगते है,भले वो
उनसे दो तीन साल छोटे हि क्यों न हों| उसके बाद स्कूल से छुट्टी के बाद का वही सिलसिला
रहता था, अमरुद लेना साथ में और वापस साथ साथ घर जाना| लाल अमरुद ने उससे दोस्ती
करा दी, जोकि ऐसे तो मै कभी न कर पाता| उन दिनों मै इतनी कोशिश करता की भाई अपने
दोस्तों के साथ चला जाये, या रिक्शे से ही चला जाये| एक दिन मेरा भाई बीमार पड़
गया| उस दिन मै बहुत खुश हुआ, शायद मैं ऐसा पहला भाई हूँगा| ऐसे तो वो कितना भी
बीमार पड़ जाये,कितने भी बहाने मार ले,मै उसे छुट्टी नहीं लेने देता था पर उस दिन
मैंने खुद उसके लिए लीव एप्लीकेशन लिखी वो भी तीन दिन की| उन तीनो दिन मै अकेले ही
उसके साथ आया| आज भी ये सब याद करके बहुत हँसी आती है| फिर सर्दियों की छुट्टियाँ
हो गयी| बाद में उसके मम्मी पापा ने घर बदल लिया और उसे साईकिल भी दिला दी| अब तो
वो साईकिल से ही आती जाती थी| फिर से हमारी बातचीत कम हों गयी क्योकि स्कूल के
अंदर तो लड़के लड़कियों का आपस में बात करना पाप के समान था| और इससे पहले कि मै कुछ कुछ करके अपना घर बसा पाता
उसके पापा का ट्रान्सफर दूसरे शहर में हों गया|
~ 'शेखर'